किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले के सामने ढ़ेरों सवाल , चिंताएं और आशंकाएं होती हैं जिनके जवाब की तलाश में वह इधर-उधर बात करता है या पूछता है। इस जद्दोजहद में वह आशा और निराशा के आयामों में झूलता रहता है। मेरी आज ऐसे सभी साथियों से एक इल्तज़ा है कि आपकी क्षमता और इरादों की मज़बूती को आपसे बेहतर कोई नहीं जान सकता है। किसी दूसरे के निराशाजनक अनुभव आपकी जिन्दगी में लफ्ज़ ब लफ्ज़ लागू होंगे, ऐसा कभी नहीं होता है। मैं हैरान हो जाता हूँ जब कोई इस बात पर अटल होने की कोशिश करता है कि आजकल चैक - जैक के बिना चयन नहीं होता है , और कुछ तो एक-दो कदम आगे बढ़कर उदाहरण भी बताने लगते हैं। मित्रो, ऐसी बातें कुछ नाकामयाब लोगों के द्वारा अपनी नाकामी छुपाने के लिए लबादे की तरह ओढ़ ली जाती हैं और ऐसे लोग मौके - बेमौके औरों को भी निराश करते हैं। मैं अपवादों की बहस में जाए बिना बस इतना सा कहना चाहता हूँ कि आप जूते, कपड़े , अंगूठी आदि सब अपने नाप - माप से लेते हैं जो बहुत कम अवधि तक हमारे साथ रहते हैं। जब हम बहुत कम समय तक चलने वाली चीजों के लिए भी अपनी जरूरत , क्षमता और नाप को देखते हैं तो फिर जिन बातों या कामों से हमारी जिन्दगी हमेशा के लिए बेहतर बनती हो , वहां चंद निराश और निस्तेज़ लोगों की बातों/ मिथ्या दावों से पूरी जिन्दगी को क्यों खराब कर लेते हैं ?
एक ही बात मेरी समझ में आती है कि आशावादी विचार हमेशा प्रतियोगी के मन में रहने चाहिए। इसके लिए किसी क्रान्ति करने की जरूरत नहीं है , जरूरत बस इस सोच की है कि मैं कर सकता हूँ , मैं करके दिखा दूंगा। मुझसे पहले कितने हारे या किसने अपनी कामयाबी के लिए क्या - क्या हथकंडे अपनाए आदि -आदि सबकुछ हमारे चिंतन का विषय नहीं है। सोते -जागते , उठते -बैठते मुझे केवल उनको सोचना है जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी कामयाब होकर दिखाया है। व्यवस्था पर आरोप लगाकर खुद को खालिस साबित करने वालों के पास आने वाली पीढ़ियों के लिए बस निराशा ही बचती है। आपका आत्मविश्वास डगमगाए नहीं , ये ही सबसे ज्यादा जरूरी है। लगातार और अनथक प्रयास ही उनवान देते हैं। गुमनामी की कतार में इच्छा-अनिच्छा से लगने वाले तो बहुत हैं मगर विपरीत हालातों और कुंद लोगों के बीच में से निकलकर कामयाब होने वाले ही मिसाल बनते हैं। अपने सभी प्रतियोगी साथियों से विनम्र अनुरोध है कि सिर्फ अच्छा सोचिए , आत्मविश्वास बनाकर रखिए और थोड़ा-थोड़ा ही सही मगर रोज़ पढ़िए !!! ध्यान रखिएगा कि आपकी कामयाबी व्यवस्था पर आपका विश्वास बढ़ाती है और नाकामयाबी झूठी कहानियां व निराश उदाहरण।
कामयाब बनिए - अपने लिए , अपनों के लिए और उन सब के लिए जो आपको देखकर खुद को भरोसा दिलाएंगे कि मैं भी एक दिन इनकी तरह कामयाब हो जाऊँगा !!!
साभार - जितेन्द्र कुमार सोनी IAS
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