भारतीय रेलवे सामान्य ज्ञान - मुख्य तथ्य ( Indian Railway GK in Hindi )


RRB GK in Hindi


1. भारतीय रेलवे बोर्ड की स्थापना कब की गई थी? – 1905 में 
2. 'मेट्रो पुरुष' उपनाम से कौन प्रसिद्ध हैं? – इंजीनियर श्रीधरन
3. भारत में सर्वप्रथम रेल का शुभारंभ किसने किया था? – लॉर्ड डलहौजी ने  4. भारत में कुल रेलमार्ग की लंबाई कितनी है? – 63,974 किमी 
5. भारतीय रेल का राष्ट्रीयकरण कब हुआ? – 1950 में 
6. रेल मंत्रालय ने ‘विलेज ऑन वहील्स नामक’ परियोजना किस वर्ष प्रारंभ की? – 2004 ई. 
7. भारत में माल परिवहन के लिए किस माध्यम का सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता है? – भारतीय रेलवे 
8. भारतीय रेल कितने क्षेंत्रों (जोन) में बाँटी गई है? – 17 
9. 3 फरवरी, 1925 को भारत में पहली बिजली की ट्रेन चली। रेलवे ने यह सेवा किसके बीच दी? – बॉम्बे वीटी और कुर्ला
10. डीजल लोकोमोटिव वक्र्स की स्थापना कब हुई? – 1964 ई. 
11. भारत की पहली रेल ने मुंबई और थाणे के मध्य कितनी दूरी तय की? – 34 किमी 
12. भारत में प्रथम रेल कब चली? – 16 अप्रैल, 1853 ई. 
13. भारतीय रेल की सबसे लम्बी रेल यात्रा डिब्रूगढ़ से कन्याकुमारी के बीच (विवेक एक्सप्रेस) कितने किमी की है? – 4,286 किमी
14. वृंदावन एक्सप्रेस किन स्थानों के मध्य चलती है? – चेन्नई और बैंगलुरू 
15. पूर्वी रेलवे के बँटवारे के बाद हाजीपुर के आंचलिक मुख्यालय का नाम क्या है? – पूर्व मध्य रेलवे 
16. भारत का सबसे बड़ा सार्वजनिक उपक्रम कौन-सा है? – भारतीय रेल 
17. कोलकाता में भूमिगत रेलमार्ग दमदम से टॉलीगंज तक लंबाई कितनी है? – 16.45 किमी 
18. देश की सबसे लंबी दूरी के रेलमार्ग की लंबाई कितनी है? – 4256 किमी 
19. भारतीय रेलवे बोर्ड की स्थापना कब की गई? – मार्च 1905
20. भारत की पहली रेल कहाँ चली? – मुंबई और थाणे के मध्य 21. सोन नदी पर बना देश में सबसे लम्बा रेल पुल कौन सा है? – नेहरू सेतु
22. ‘व्हील्स एंड एक्सल प्लांट’ कहाँ स्थित है? – बैंगालुरू में 
23. भारत में प्रथम क्रांति रेल कहाँ चली? – दिल्ली से बैंगालुरू 
24. कुल केंद्रीय कर्मचारियों का कितना % भाग रेलवे में कार्यरत है? – 40%
25. उत्तर रेलवे में सर्वप्रथम पहली रेल बस किस दिन राजस्थान के मेड़ता शहर से मेड़ता रोड के बीच प्रारम्भ की गई? – 12 अक्टूबर, 1994
26.  कोयले से चलने वाला देश का सबसे पुराना इंजन कौन-सा है? – फेयरी क्वीन27. भारत, एशिया तथा विश्व का सबसे लम्बा रेलवे प्लेटफॉर्म कौन सा है जिसकी लम्बाई 1366.33 मी. है? – गोरखपुर रेलवे स्टेशन (उत्तर प्रदेश)
28. विश्व में प्रथम रेल कब चली? – 1825 ई., इंग्लैंड 
29. पुणे​ स्थित 'इरिसेन' आईएसओ 9001-2000 से प्रमाणित भारतीय रेल का प्रथम किस तरह का संस्थान है? – प्रशिक्षण
30. भारतीय रेल बजट को सामान्य बजट से कब अलग किया गया? – 1824 ई. 
31. रेलवे द्वारा रेडियो आधारित सिग्नल डियाजन परियोजना की शुरूआत किस वर्ष कानपुर से की गई? – 2015
32. भारत में भूमिगत (मेट्रो रेलवे) का शुभारंभ कब और कहाँ हुआ था? – 1984-85 ई., कोलकाता 
33. वर्ष 2015 से रेलवे प्लेटफार्म टिकट की दर क्या है? – 10 रूपये
34. भारत में सबसे लंबी दूरी तय करने वाली रेलगाड़ी कौन-सी है? – विवेक एक्सप्रेस 
35. भारत में प्रथम विद्युत इंजन का निर्माण कब प्रारंभ हुआ? – 1971 ई. 
36. रेल टिकट पर आरक्षण और ट्रेनों के आवागमन की सूचना देने वाला हेल्पलाइन नम्बर क्या है? – 139 
37. इंटीग्रल कोच फैक्टरी कहाँ है? – पैरंबूर (चेन्नई) 
38. रेलवे कोच फैक्टरी कहाँ है? – हुसैनपुर (कपूरथला) 
39. भारत की पहली सेमी हाई स्पीड ट्रेन गतिमान एक्सप्रेस का सफल परीक्षण 3 जुलाई, 2014 को किया गया। यह ट्रेन कितने किमी घण्टा की गति से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से आगरा कैंट के मध्य चलाई गई? – 160 किमी
40. रेलवे कोच फैक्टरी की स्थापना कब हुई? – 1988 ई. 
41. भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाली रेलगाड़ी कौन-सी है? – समझौता व थार एक्सप्रेस 
42. भारत में सबसे तेजगति से चलने वाली रेलगाड़ी कौन-सी है? – शताब्दी एक्सप्रेस 
43. देश में पहली बुलेट ट्रेन किसके मध्य चलाई जाएगी? – मुम्बई व अहमदाबाद
44. भारत का सबसे लंबा प्लेटफॉर्म कौन-सा है? – खड़गपुर (पश्चिमी बंगाल) 
45. भारत के किस राज्य में रेल लाइन सबसे अधिक है? – उत्तर प्रदेश 
46. पूर्वी उत्तर भारत के राज्य में रेलमार्ग नहीं है? – मेघालय 
47. भारतीय रेलवे में सबसे बड़ी आय का माध्यम क्या है? – मालभाड़ा
48. पैलेस ऑन व्हील्स की तर्ज पर नई रेलगाड़ी ‘डेक्कन ओडिसी’ का परिचालन किस राज्य में हो रहा है? – महाराष्ट्र 49. कोंकण रेलमार्ग किस पर्वत शृंखला से होकर गुजरता है? – पश्चिमी घाट 
50. सबसे लम्बी रेल सुरंग का रिकॉर्ड कोंकण रेलवे को जाता है। इसकी लम्बाई कितनी है? – 6.5 किलोमीटर
51. भारत में किस रेलवे जोन की लम्बाई सबसे अधिक है? – उत्तर रेलवे
52. भारत में कितने प्रकार के रेलमार्ग है? – 3 प्रकार 
53. रेल पथ के ब्रॉड गेज की चौड़ाई कितनी होती है? – 1.676 मीटर 
54. रेल दिवस प्रतिवर्ष कब मनाया जाता है? – 16 अप्रैल
55. भारत में प्रथम विद्युत रेल कब चली? – 1925 ई. 
56. विद्युत से चलने वाली प्रथम रेलगाड़ी कौन-सी है? – डेक्कन क्वीन 
57. रेल सेवा आयोग के मुख्यालय कहाँ-कहाँ है? – इलाहाबाद, मुंबई, कोलकाता, भोपाल और चेन्नई58. भारतीय रेल का आखिरी रेलवे स्टेशन उत्तर रेलवे पर कौन सा है, जहां से फिरोजपुर शहर मात्र 7 किमी दूरी पर स्थित है? – हुसैनीवाला
59. भारतीय रेल नेटवर्क का विश्व में कौन-सा स्थान है? – चौथा 
60. भारतीय रेल में तृतीय श्रेणी किस वर्ष समाप्त कर दी गई? – 1974
 





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भारतीय क्रषि पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव (Climate Change Effects in Indian Agriculture)


Climate Change Effects in Indian Agriculture


वर्तमान विश्व में मानव जनित और भौगोलिक कारणों के चलते इस समय जलवायु अनिश्चित सी हो गयी है. यह अनिश्चितता आने वाले कई सालों तक देखने को मिल सकता है. गर्मियां बढती जा रही हैं और ठण्ड कम होती जा रही है. अलनीनो संकट बना ही रहता है. बरसात समय से पहले दस्तक दे जा रही है और पूर्व तय मानसून के समय सूखे की स्थिति उत्पन्न होती जा रही है. एक तरफ बारिस से बाढ़ की स्थिति बन रही है तो दूसरी तरफ किसान आसमान की तरफ टकटकी लगाये बारिस की बूंदों का इंतजार करता रह जा रहा है और उसकी खेत में खड़ी फसल सूख जा रही है. अगर गौर करे तो यह दिखता है की मौसम में बदलाव का दौर जारी है और निश्चित प्रतिमान सुनिश्चित होने में अभी वक्त लग सकता है.

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि मानव की बढ़ती महत्वकांक्षा के चलते बढ़ते औद्योगिकरण एवं बढ़ते वाहनों की संख्या से ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में इजाफा हुआ है. जिससे तापमान वृद्दि और बरसात के दिनों में कमी आई है.
हालांकि, जलवायु परिवर्तन से होनेवाले नुकसान पर नियंत्रण के बड़े-बड़े वैश्विक दावे भी किए जा रहे हैं. लेकिन इन सबके बावजूद प्रकृति में बदलाव को रोका नहीं जा सका है. प्रभाव साफ हैं कि मानसून का चक्र बिगड़ रहा है. मौसम का मिजाज बदल रहा है. इसका असर दूरदराज तक गांवों, खेत-खलिहानों तक में हो रहा है. सबसे अधिक प्रभाव तो कृषि पर पड़ रहा है, जहां परंपरागत रूप से उत्पादित होती आ रहीं बड़ी संख्या में फसलों का नामो-निशान तक मिट गया है. कम पानी और रासायनिक खादों के बिना पैदा होने वाली कई फसलें समाप्त हो चुकी हैं और उसकी जगह नई फसलों ने ले लिया है. इनमें बड़ी मात्रा में रासायनिक खादों, कीटनाशकों, परिमाजिर्त बीजों और सिंचाई की जरूरत पड़ती है. इससे खेती का खर्च बढ़ा है और खेती के तरीके मे बदलाव आया है. इसका सीधा असर ग्रामीण कृषक समाज के जीवन स्तर और रहन-सहन पर पड़ रहा है. खेती घाटे का सौदा बनने के चलते किसान अन्य धंधों की ओर जाने को विवश हुआ है. खेती में उपज तो बढ़ी लेकिन लागत कई गुना अधिक हो गई, जिससे अधिशेष यानी, माजिर्न का संकट पैदा हो गया. गर्मी, जाड़े और बरसात के मौसम में कुछ फेरबदल से फसलों की बुबाई, सिंचाई और कटाई का मौसम बदला और जल्दी खेती करने के दवाब में पशुओं को छोड़ मोटर चालित यंत्रों पर निर्भरता आई. उसपे सरकार द्वारा उचित प्रोत्साहन न मिलने के चलते छोटे किसान असंगत मशीनरी द्वारा कृषि कार्य करने के लिए मजबूर हुए और वे कर्ज के जाल में फसते चले गए. इनका परिणाम हुआ कि पूरी तरह किसानी पर निर्भर रहनेवाला समाज बुरी तरह से ध्वस्त हो गया. क्योंकि खेती घाटे का सौदा हो गया. अब हर परिवार को खेती के अलावा कोई दूसरा काम करना मजबूरी हो गई.


एक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार 1971-81 के दशक के बाद वर्षा के औसत में गिरावट आई है। मानसून की वर्षा में अनियमितता बढ़ रही है, खंड वृष्टि भी बढ़ रही है. मानसून वर्षा का आगमन सामान्य में 100 मिमी. जल्दी की तरफ बढ़ रहा है. साथ ही साथ इसकी सक्रिय  समयावधि भी बढ़ रही है. शीतकालीन वर्षा के औसत में कमी आई है, जबकि मानसून पूर्व की वर्षा का औसत बढ़ रहा है. पिछले कई वर्षों से मौसम की असामान्य परिस्थितियां बढ़ गई हैं. जैसे एक ही दिन में अत्यधिक वर्षा, पाला, सूखे का अंतराल, फरवरी, मार्च माह में तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि, मार्च-अप्रैल माह में तेज बारिश, ओला वृष्टि होने लगी है. सबसे अहम समस्या तो तूफानों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। तूफानों के कारण जनजीवन पर प्रभाव पड़ ही रहा है, पर फसलें बरबाद होने लगी हैं.
वर्ष 2001 में मानसून के समय में बदलाव की वजह से 51 प्रतिशत तक कृषि भूमि प्रभावित हुई थी. तापमान के बढ़ने से रबी की फसलों का जब पकने का समय आया है तब तापमान में तीव्र वृद्धि से फसलों में एकदम बालियां आ गई जिससे गेहूँ व चने की फसलों के दाने बहुत पतले हो गए व उत्पादकता घट गई. अबकी भी यही हुआ जब गेहूं के पकने का समय आया तब बारिस और ओले से तैयार फसल तो गिरदावरी का शिकार बन गयी. खेतों में पानी रुकने से गेहूं की बाल काली पड़ गयी और उसमें रोग लग गया. जो गेहूं पके नहीं थे और कहर से बच गए वह बारिस की वजह से तापमान गिरने से उनमें दाने बहुत पतले पड़े या पड़े ही नहीं.

Climate Change Effects in Indian Agriculture

जलवायु परिवर्तन के इस खतरे को न तो किसान और न ही सरकार कम कर सकती है. अतः जलवायु परिवर्तन के संकट से बचने और बचाने का प्रयास होना चाहिए. किसान और सरकार दोनों को मिल कर आगे बढ़ना होगा. सरकार को जहाँ देश के खाद्यान्न निर्भरता के लिए किसानों का साथ देना चाहिए वहीँ किसानों को उन्नत एवं संगत तकनीकी की मदद से परंपरागत खेती से हट कर कम दिनों वाली नकद फसल की तरफ कदम बढ़ाने होंगे. जिससे एकाध फसल नष्ट होने पर किसानों के सामने आत्महत्या के आलावा भी रास्ता बचा रहे.

जैविक एवं समग्रित खेती :- खेतों में रासायनिक खादों व कीटनाशकों के इस्तेमाल से जहाँ एक ओर मृदा की उत्पादकता घटती है वहीं दूसरी ओर इनकी मात्रा भोजन श्रृंखला के माध्यम से मानव के शरीर में पहूँच जाती है. जिससे अनेक प्रकार की बीमारियाँ होती हैं. रासायनिक खेती से हरित गैसों के उत्सर्जन में भी हिजाफा होता है. अत: हमें जैविक खेती, जीरो बजटया प्राकृतिक खेती करने की तकनिकों पर अधिक से अधिक जोर देना चाहिए. उर्वरक की जगह कम्पोस्ट खाद, केंचुआ खाद, रासायनिक कीटनाशक की जगह नीम के पेस्ट आदि का प्रयोग होना चाहिए.

Climate Change Effects in Indian Agriculture

एकल कृषि की बजाय हमें समग्रित कृषि करनी चाहिए. एकल कृषि में जहाँ जोखिम अधिक होता है वहीं समग्रित कृषि में जोखिम कम होता है. समग्रित खेती में अनेकों फसलों का उत्पादन किया जाता है जिससे यदि एक फसल किसी प्रकोप से समाप्त् हो जाए तो दूसरी फसल से किसान की रोजी रोटी चल सकती है. उचित मिश्रित फसलों को लेने पर फसलों की जड़े अलग-अलग स्तर से उचित खुराक ले लेती हैं एवं सहअस्तित्व के आधार पर रोगों एवं कीटों से बचाव तथा नाइट्रोजन का बटवारा कर लेती है. उचित फसल चक्र अपनाने से भूमि को नाइट्रोजन स्वतः ही प्राप्त हो जायेगा. ऊपर से यूरिया देने की आवश्यकता नहीं होगी. अधिक उर्वरक के कारण पंजाब के बंजर होते जा रहे खेत की स्थिति पूरे भारतवर्ष में किसी से छुपी नहीं है.

नकद फसल:- किसानों को अब परंपरागत खेती के बजाय कम दिनों में होने वाली नकद फसलों की तरफ रुझान करना चाहिए. नकद फसल की खेती से किसान भाई सब्जी, फूल, बागवानी कृषि कर सकते हैं. नकद फसल में किसान भाई साल में चार फसलें ले सकते हैं. नकद फसल मौसम से ज्यादा प्रभावित भी नहीं होती क्योंकि इनका फसल चक्र एक, दो या तीन महीने का होता है.

Climate Change Effects in Indian Agriculture

किसानों को अब खेती के अपने पुराने तरीके बदलने होंगे. उन्हें परंपरागत खेती के साथ सह-खेती, बहुखेती और नकद खेती की तरफ कदम बढ़ाने होंगे. उद्यान खेती और कृषि में जोखिम कम होने के कारण किसानों को इसकी खेती करनी चाहिए. खेती में जैविक तत्वों का प्रयोग करें जिससे खेती पर लागत कम आए और फसल के उचित दाम भी बाजार से मिल सके तथा भूमि की उर्वरकता भी बनी रहे साथ ही उर्वरकों, कीटनाशकों और खर-पतवारनाशी पर होने वाला खर्च भी बचेगा.

फसली संयोजन में परिवर्तन :- जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ हमें फसलों के प्रारूप एवं उनके बोने के समय में भी परिवर्तन करना पड़ेगा. मिश्रित खेती व इंटरक्रापिंग करके जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटा जा सकता है. कृषि वानिकी अपनाकर भी हम जलवायु परितर्वन के खतरों से निजात पा सकते हैं.
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से भारतीय कृषि को बचाने के लिए हमें अपने संसाधनों का न्यायसंगत इस्तेमाल करना होगा व भारतीय जीवन दर्शन को अपनाकर हमें अपने पारम्परिक ज्ञान को अमल में लाना पड़ेगा. अब इस बात की सख्त जरूरत है कि हमें खेती में ऐसे पर्यावरण मित्र तरीकों को अहमियत देनी होगी जिनसे हम अपनी मृदा की उत्पादकता को बरकरार रख सकें व अपने प्राकृतिक संसाधनों को बचा सकें.

Climate Change Effects in Indian Agriculture

फसल उत्पादन में नई तकनिकों का विकास :- जलवायु परिवर्तन के गम्भीर दूरगामी प्रभावों को मध्यनजर रखते हुए ऐसे बीजों की किस्मों का विकास करना पड़ेगा जो नये मौसम के अनुकूल हों. हमें ऐसी किस्मों का विकसित करना होगा जो अधिक तापमान, सूखे व बाढ़ की विभिषिकाओं को सहन करने में सक्षम हों. हमें लवणता एवं क्षारीयता को सहन करने वाली किस्मों को भी ईजाद करना होगा.

उन्नत एवं संगत मशीनरी का प्रयोग:- खेतों में उन्नत, नवीन एवं संगत मशीनरी का प्रयोग किया जाना चाहिए. छोटे खेतों में ट्रैक्टर से खेती को हतोत्साहित किया जाना चाहिए और उनके स्थान पर बाजार में उपलब्ध पॉवर टिलर और मिनी पॉवर टिलर का प्रयोग होना चाहिए. छोटे खेतों पर ट्रैक्टर से खेती करने पर खेती की लागत बढ़ जाती है और किसान कर्ज के भवर में फस जाता है. देश की औसत जोत 2.87 एकड़ (1.16HA) है. जिसमें अत्यंत छोटे किसान और लघु किसान की औसत जोत क्रमशः 0.38HA एवं 1.42 HA है. वर्ष 2010-11 की कृषि जनगणना के अनुसार अत्यंत छोटे और लघु किसान जिनकी जोत 2HA से कम है 85% कृषि जोत रखते हैं और 44% कृषि योग्य भूमि पर खेती करते हैं. इनकी खेती सबसे ज्यादा जोखिमपूर्ण होती है. ये अधिकतर कृषि मशीनरी की उपलब्धता न होने के कारण परंपरागत खेती ही करते हैं और उसके किसी कारण नष्ट होने पर कंगाली के कगार पर खड़े हो जाते हैं.

Climate Change Effects in Indian Agriculture

सरकार इनका ही ध्यान नहीं रखती. सारी योजनाये इनके लिए बनाती हैं पर योजना का लाभ इन तक नहीं पहुचता. कृषि यंत्रों की सब्सिडी इन तक नहीं पहुंचती. सरकार यदि वास्तव में इन्हें लाभ देना का इरादा रखती तो आज जो करीब 6 लाख ट्रैक्टर, 60 हजार पॉवर टिलर और करीब 6 हजार मिनी टिलर की बिक्री दर्ज की जा रही है स्थिति बिलकुल इसके उलट होती. सरकार 35 HP से ऊपर वाले ट्रैक्टरों को सब्सिडी दे रही है जिनका अधिकतर व्यावसायिक प्रयोग होता है और ये विनिर्माण सेक्टर, भट्ठों पर, बालू दुलाई सरीखे कामों में प्रयोग किये जाते हैं.अगर सरकार वास्तव में किसानों के लिए फिक्रमंद है तो उसे विशुद्ध कृषि उपयोगी पॉवर टिलर और मिनी पॉवर टिलर को सब्सिडी देनी चाहिए. गौरकाबिल है की एक ट्रेक्टर की सब्सिडी में दो पॉवर टिलर पर सब्सिडी दी जा सकती है. यह पुरुष और महिला मित्रवत मशीनरी भी है.

किसान नकद फसल की खेती अधिक श्रम होने के चलते नहीं करते पर पॉवर टिलर या मिनी पॉवर टिलर से खेत और बागवानी के सारे काम किये जा सकते हैं. जिससे काफी कम समय में और कम लागत में खेती संभव हो जाती है और मुनाफा बढ़ जाता है. एक बार किसान जब मुनाफ़े का स्वाद चख लेता है तो फिर वह परंपरागत खेती के बजाय नकद फसल ही उगाता है.

Climate Change Effects in Indian Agriculture

अन्य प्रबंधन :- अधिक तापमान व वर्षा की कमी से सिंचाई हेतु भू-जल संसाधनों का अधिक दोहन से बचने के लिए जमीन में नमी का संरक्षण व वर्षा जल को एकत्रित करके सिंचाई हेतु प्रयोग में लाना एक उपयोगी एवं सहयोगी कदम हो सकता है. इससे पंजाब, हरियाणा व प. उत्तर प्रदेश के बहुत से विकास खण्डों जैसी स्थिति आने से पहले ही निपटा जा सकेगा. इसके लिए किसान भाई वाटरशैड प्रबंधन के माध्यम से वर्षा के पानी को संचित कर सिंचाई के रूप में प्रयोग कर सकते हैं. इससे सिंचाई की सुविधा तथा भूजल पूनर्भरण दोनों में सहायता मिलेगी. ऐसा करने से बाढ़ की स्थिति से भी काफी हद तक लगाम लगेगी और मिट्टी के क्षरण को भी रोका जा सकेगा. सूखे की वजह से बंजर बन रहे क्षेत्रों पर भी लगाम लगेगी. गर्म जलवायु में कीट पतंगों की प्रजनन क्षमता की वृद्धि होगी जिसे जैविक नीम के पेस्ट से ख़त्म किया जा सकता है. जैविक प्रबंधन होने से उसका मानव स्वास्थ्य पर कोई हानिकारक प्रभाव भी नहीं पड़ेगा.

जलवायु परिवर्तन की स्थिति का विरोध तो नहीं किया जा सकता पर इसके कुप्रभाव को उचित रीति अपनाकर कम किया जा सकता है. किसानों की वर्तमान स्थिति से निकालकर किसानी को भी लाभप्रद बनाया जा सकता है. इसके लिए सरकार, कृषि विभाग और किसान तीनों को मिल कर चलना होगा और संगत मशीनरी का प्रयोग करना होगा.




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निबंध - जलवायु परिवर्तन ( Climate Change Eassay in Hindi )


Climate Change Eassay in Hindi

दुनिया भर के नेता फ्रांस की राजधानी पेरिस में इस चिंता के साथ इकट्ठा हुए हैं कि किस तरह से धरती के बढ़ते तापमान को और बढ़ने से रोका जाए.
दरअसल, पिछली कुछ सदियों से हमारी जलवायु में धीरे-धीरे बदलाव हो रहा है. यानी, दुनिया के विभिन्न देशों में सैकड़ों सालों से जो औसत तापमान बना हुआ था, वह अब बदल रहा है.
जलवायु परिवर्तन है क्या?
पृथ्वी का औसत तापमान अभी लगभग 15 डिग्री सेल्सियस है, हालाँकि भूगर्भीय प्रमाण बताते हैं कि पूर्व में ये बहुत अधिक या कम रहा है. लेकिन अब पिछले कुछ वर्षों में जलवायु में अचानक तेज़ी से बदलाव हो रहा है.
मौसम की अपनी खासियत होती है, लेकिन अब इसका ढंग बदल रहा है. गर्मियां लंबी होती जा रही हैं, और सर्दियां छोटी. पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है. यही है जलवायु परिवर्तन.
अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है. जवाब भी किसी से छिपा नहीं है और अक्सर लोगों की जुबां पर होता है ‘ग्रीन हाउस इफेक्ट’.
क्या है ग्रीन हाउस इफेक्ट ?

gases responsible for climate change

पृथ्वी का वातावरण जिस तरह से सूर्य की कुछ ऊर्जा को ग्रहण करता है, उसे ग्रीन हाउस इफेक्ट कहते हैं. पृथ्वी के चारों ओर ग्रीन हाउस गैसों की एक परत होती है. इन गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड शामिल हैं.
ये परत सूर्य की अधिकतर ऊर्जा को सोख लेती है और फिर इसे पृथ्वी की चारों दिशाओं में पहुँचाती है.
जो ऊर्जा पृथ्वी की सतह तक पहुँचती है, उसके कारण पृथ्वी की सतह गर्म रहती है. अगर ये सतह नहीं होती तो धरती 30 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा ठंडी होती. मतलब साफ है कि अगर ग्रीनहाउस गैसें नहीं होतीं तो पृथ्वी पर जीवन नहीं होता.
वैज्ञानिकों का मानना है कि हम लोग उद्योगों और कृषि के जरिए जो गैसे वातावरण में छोड़ रहे हैं (जिसे वैज्ञानिक भाषा में उत्सर्जन कहते हैं), उससे ग्रीन हाउस गैसों की परत मोटी होती जा रही है.
ये परत अधिक ऊर्जा सोख रही है और धरती का तापमान बढ़ा रही है. इसे आमतौर पर ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन कहा जाता है.
इनमें सबसे ख़तरनाक है कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा का बढ़ना. कार्बन डाइऑक्साइड तब बनती है जब हम ईंधन जलाते हैं. मसलन- कोयला.
जंगलों की कटाई ने इस समस्या को और बढ़ाया है. जो कार्बन डाइऑक्साइड पेड-पौधे सोखते थे, वो भी वातावरण में घुल रही है. मानवीय गतिविधियों से दूसरी ग्रीनहाउस गैसों मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन भी बढ़ा है, लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में इनकी मात्रा बहुत कम है.
1750 में औद्योगिक क्रांति के बाद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 30 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है. मीथेन का स्तर 140 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है. वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर आठ लाख वर्षों के सर्वोच्च स्तर पर है.

तापमान बढ़ने के सबूत क्या हैं?
उन्नीसवीं सदी के तापमान के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 100 साल में पृथ्वी का औसत तापमान 0.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ा. इस तापमान का 0.6 डिग्री सेल्सियस तो पिछले तीन दशकों में ही बढ़ा है.
उपग्रह से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ दशकों में समुद्र के जल स्तर में सालाना 3 मिलीमीटर की बढ़ोतरी हुई है. सालाना 4 प्रतिशत की रफ़्तार से ग्लेशियर पिघल रहे हैं.
जलवायु परिवर्तन का असर मनुष्यों के साथ साथ वनस्पतियों और जीव जंतुओं पर देखने को मिल सकता है. पेड़ पौधों पर फूल और फल समय से पहले लग सकते हैं और जानवर अपने क्षेत्रों से पलायन कर दूसरी जगह जा सकते हैं.
भविष्य में कितना बढ़ेगा तापमान
2013 में जलवायु परिवर्तन पर एक अंतरराष्ट्रीय समिति ने कंप्यूटर मॉडलिंग के आधार पर संभावित हालात का पूर्वानुमान लगाया था.
उनमें से एक अनुमान सबसे अहम था कि वर्ष 1850 की तुलना में 21वीं सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा.
यहाँ तक कि अगर हम ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में अभी भारी कटौती कर भी लें तब भी जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दिखते रहेंगे, खासकर हिमखंडों और ग्लेशियर्स पर.

जलवायु परिवर्तन का हम पर क्या असर?
असल में कितना असर होगा इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ कहना तो मुश्किल है. लेकिन इससे पीने के पानी की कमी हो सकती है, खाद्यान्न उत्पादन में कमी आ सकती है, बाढ़, तूफ़ान, सूखा और गर्म हवाएं चलने की घटनाएं बढ़ सकती हैं.
जलवायु परिवर्तन का सबसे ज़्यादा असर ग़रीब मुल्कों पर पड़ सकता है. इंसानों और जीव जंतुओं कि ज़िंदगी पर असर पड़ेगा. ख़ास तरह के मौसम में रहने वाले पेड़ और जीव-जंतुओं के विलुप्त होने का ख़तरा बढ़ जाएगा.




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भारत की प्रमुख नदियाँ ( Indian River GK in Hindi )


Indian River GK in Hindi

भारत में अनेक छोटी - बड़ी नदियाँ अपनी सहायक नदियों के साथ भारत भूमि को पवित्र करते हुए बहती है। भारत की कुछ प्रमुख नदियों की जानकारी यहाँ दी गई है - 

1.सिन्धु नदी 
सिंधु नदी को इंडस नदी भी कहा जाता है। इस नदी का उद्गम तिब्बत स्थित मानसरोवर झील से हुआ है। सिंधु नदी तिब्बत, भारत तथा पाकिस्तान में बहते हुए अरब सागर में मिल जाती है। सिंधु नदी की कुल लंबाई लगभग 2880 किमी है तथा यह भारत में 992 किमी लम्बी है। सिंधु नदी की प्रमुख सहायक नदियों झेलम , चेनाब , रावी , व्यास एवं सतलज है ।


2.झेलम नदी 
झेलम नदी का उद्गम कश्मीर घाटी की शेषनाग झील के निकट बेरनाग नामक स्थान से हुआ है। वूलर झील में मिलने के बाद यह पाकिस्तान में प्रवेश करती हैं तथा चेनाब नदी में मिल जाती है। झेलम नदी की की कुल लंबाई 724 किमी है एवं भारत में इसकी लंबाई 400 किमी है


3.व्यास नदी
इस नदी का उद्गम हिमालय के रोहतांग दर्रे के समीप व्यास कुण्ड से हुआ है । यह कुल लंबाई 470 किमी तय करते हुए पंजाब में सतलज नदी में मिल जाती है।


4.चेनाब नदी
चेनाब नदी हिमाचल प्रदेश के लाहौल के बारालाचा दर्रे से निकलती हैं। यह पीर पंजाल के समांतर बहते हुए किशतबार के निकट पीर पंजार में गहरा गार्ज बनाती है। भारत में चेनाब नदी की लंबाई 1180 किमी है। यह पाकिस्तान में जाकर सतलज नदी में मिल जाती है।


5.रावी नदी 
रावी नदी हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे से निकलती है एवं पाकिस्तान के मुल्तान के समीप चेनाब नदी में मिल जाती है। इस नदी की लंबाई 720 किमी है।


6.सतलज नदीसतलज नदी का उद्गम तिब्बत स्थित मानसरोवर झील के निकट राक्षसताल से हुआ है। यह नदी अपने उद्गम स्थल से 1500 किमी दूरी तय करके पाकिस्तान में चेनाब नदी में मिल जाती है। भारत में सतलज नदी की लंबाई 1050 किमी है। प्रसिद्ध भाखड़ा - नागल बांध सतलज नदी पर ही बना है।


7.गंगा नदी 
गंगा नदी का उद्गम उत्तराखण्ड के गोमुख हिमनद के निकट गंगोत्री ग्लेशियर से हुआ है। वास्तव में अलखनन्दा तथा भागीरथी नदी के देवप्रयाग मिलने पर यह गंगा नदी कहलाती है। इलाहाबाद के निकट गंगा से यमुना मिलती है जिसे संगम या प्रयाग कहा जाता है। गंगा नदी दक्षिण - पूर्व की ओर बहते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करती है जहां इसे पद्मा कहा जाता है। बांग्लादेश में समुद्र में मिलने से पहले ब्रह्मपुत्र नदी से मिलती है तो इसका नाम मेघना हो जाता है। गंगा नदी की कुल लंबाई 2525 किमी है तथा भारत मे इसकी लंबाई 2510 किमी है । गंगा नदी पश्चिम बंगाल मे विश्व प्रसिद्ध सुंदरवन का डेल्टा का निर्माण करती है। गंगा नदी की प्रमुख सहायक नदी यमुना, सोन, रामगंगा, घाघरा, कोसी, गंडक, इत्यादि हैं।


8.यमुना
यमुना नदी गंगा नदी की प्रमुख सहायक नदी है । इस नदी का उद्गम उत्तराखण्ड के यमुनोत्री नामक ग्लेशियर से हुआ है जो बंदरपूछ पहाड़ी पर स्थित है। यमुना नदी के किनारे दिल्ली, मथुरा तथा आगरा जैसे बड़े शहर बसे हुए हैं। यह लगभग 1375 किमी का सफर तय करके इलाहाबाद के निकट प्रयाग में गंगा नदी में मिल जाती है। यमुना नदी की प्रमुख सहायक नदियों में टोंस , चम्बल, बेतवा , केन , तथा काली सिंध आदि शामिल हैं। यमुना नदी को भारत की सबसे अधिक प्रदूषित नदी माना जाता है ।


9.चम्बल
चम्बल नदी मध्यप्रदेश के इन्दौर जिले मे स्थित महू के निकट जानापाओ पहाड़ी से निकलती है। यह नदी मध्यप्रदेश राजस्थान होते हुए उत्तर प्रदेश के इटावा जिले मे यमुना नदी में मिल जाती है। चम्बल नदी की लंबाई लगभग 950 किमी है। यह नदी बीहड़ों ( गड्ढे) का निर्माण करती है।


10.घाघरा 
इस नदी का उद्गम मापचाचुंग ग्लेशियर से हुआ है जो तिब्बत के पठार मे स्थित हैं। यह नेपाल के मध्य से बहती है। हिमालय तथा शिवालिक श्रेणियों को पार करते समय यह राशिपानी नामक स्थान पर गहरी संक्रीर्ण घाटी का निर्माण करती है। घाघरा नदी बिहार मे छपारा के पास गंगा नदी मे मिल जाती है। इस नदी की लंबाई लगभग 1200 किमी है।


11.गोमती
गोमती नदी का उद्गम उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले से हुआ है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ इसी नदी के किनारे बसा हुआ है। यह गाजीपुर के निकट गंगा नदी मे मिल जाती है


12.गण्डक
इस नदी का उद्गम नेपाल, तिब्बत की सीमावर्ती पर्वत श्रंखलाओ से हुआ है। नेपाल में इस नदी को शालीग्रमी तथा नारायणी नाम से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश तथा बिहार की सीमा मे बहते हुए यह नदी पटना के पास गंगा नदी में मिल जाती है। गण्डक नदी की लंबाई लगभग 425 किमी है।


13.कोसी
कोसी नदी का उद्गम प्रारंभिक रुप में सात धाराओ से हुआ जो नेपाल, हिमालय तथा कंचनजंगा पर्वत से निकलती है। इन धाराओ मे सबसे बड़ी धारा का नाम अरुण है जो माउंट एवरेस्ट के पास से निकलती है। बिहार के मैदानी भागों मे बहते हुए यह नदी भागलपुर जिले मे गंगा नदी मे मिल जाती है। कोसी नदी की लंबाई लगभग 750 किमी है। कोसी नदी अपने मार्ग परिवर्तन एवं भयंकर बाढ़ के लिए कुख्यात है। यह प्रतिवर्ष बिहार मे जन धन की अपार क्षति पहुंचाती है इसलिए इसे बिहार का शोक कहा जाता है।


14.दमोदर नदी 
इस नदी का उद्गम छोटा नागपुर के पठार में स्थित प्लामू पहाड़ी से हुआ है। यह झारखंड से बहती हुई पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है तथा हुगली नदी में मिल जाती है। दमोदर नदी द्वारा पश्चिम बंगाल में बांड से भारी तबाही लाती है , इसलिए इसे पश्चिम बंगाल का शोक कहा जाता है। इस नदी पर दमोदर नदी घाटी परियोजना संचालित है जो अमेरिका की टेन्सी नदी घाटी परियोजना पर आधारित है


15.बेतवा नदी 
बेतवा नदी का उद्गम मध्यप्रदेश से होता है।यह रायसेन जिले में स्थित कुमारगाँव के निकट विंध्यांचल पर्वत से निकलती है। इस नदी की लंबाई 475 किमी है। यह उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में यमुना नदी मिल जाती है। इस नदी पर माताटीला एवं राजघाट बांध निर्मित है।


16.सोन 
सोन नदी का उद्गम मध्यप्रदेश में स्थित अमरकंटक की पहाड़ियों से हुआ है। यह मध्यप्रदेश के रीवा एवं सीधी जिलों से बहती हुई उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है तथा पटना के समीप गंगा नदी में मिल जाती है। सोन नदी की लंबाई लगभग 775 किमी है। इस नदी पर बाणसागर परियोजना एवं रिहन्द परियोजना संचालित है।


17.ब्रह्मपुत्र 
ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम तिब्बत स्थित मानसरोवर झील से हुआ है। इस नदी का उद्गम स्थल समुद्र तल से 5,150 ऊंचाई पर स्थित है। ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत में सांग्पो नाम से जानी जाती है तथा भारत में अरुणाचल प्रदेश से प्रवेश करने के बाद यह दिहांग कहलाती है। असम में इसे ब्रह्मपुत्र नाम से जाना जाता है तथा बांग्लादेश में इसे जमुना कहा जाता है। गंगा एवं ब्रह्मपुत्र के संगम के बाद दोनों की सम्मिलित धारा को मेघना कहा जाता है। ब्रह्मपुत्र नदी की कुल लंबाई 2,900 किमी है तथा भारत में यह 916 किमी लम्बी है। इस नदी पर असम राज्य में विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजेली द्वीप स्थित है।


18.नर्मदा
यह नदी मध्यप्रदेश के विंध्याचल पर्वत में स्थित अमरकंटक की पहाड़ियों से निकलती है। यह अपने उद्गम स्थान से पश्चिम की ओर 1312 किमी की दूरी तय करती हुई गुजरात में भड़ौच के निकट खंबात की खाड़ी में गिरती है। नर्मदा नदी पर डेल्टा का निर्माण नही करती यह एश्चुअरी का निर्माण करती है। इस नदी पर इंदिरा सागर परियोजना, ओंकारेश्वर परियोजना एवं सरदार सरोवर परियोजना निर्मित है। 


19.ताप्ती
इस नदी का उद्गम मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई नगर के पास हुआ है। ताप्ती नदी पश्चिम की ओर नर्मदा नदी के समानांतर बहती हुई गुजरात में सूरत के निकट खंबात की खाड़ी में गिरती है। इस नदी की लंबाई 724 किमी है।


20.महानदी
महानदी का उद्गम छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर जिले में स्थित सिंहवा पहाड़ी से होता है। यह नदी छत्तीसगढ़ एवं उड़ीसा राज्य में 857 किमी बहती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इस नदी पर उड़ीसा राज्य में प्रसिद्ध हीराकुंड बांध बना है।


21.गोदावरी
इस नदी का उद्गम महाराष्ट्र के नासिक जिले से होता है। गोदावरी नदी दक्षिण भारत की सबसे लम्बी नदी है इसकी लंबाई 1465 किमी है। अपने विशाल आकार के कारण इस नदी को दक्षिण की गंगा एवं वृद्ध गंगा नाम से जाना जाता है। यह महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना के पठार को पार करती हुई बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।


22.कृष्णा
कृष्णा नदी महाराष्ट्र के महाबलेश्वर निकट एक झरने निकलती है। यह महाराष्ट्र कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश में बहते हुए विजयवाड़ा के निकट विभिन्न शाखाओं में बंगाल की खाड़ी मिल जाती है। इस नदी की लंबाई 1400 किमी है। कृष्णा नदी पर नागार्जुन सागर परियोजना तथा श्री शैलम परियोजना निर्मित है।


23.कावेरी 
कावेरी नदी का उद्गम कर्नाटक राज्य के कुर्ग जिले में स्थित ब्रम्हागिरी की पहाड़ियों से हुआ है। कावेरी नदी में प्रसिद्ध शिवसमुद्रम् जलप्रपात स्थित हैं। यह नदी 800 किमी दूरी तय करते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।


24.क्षिप्रा 
क्षिप्रा नदी मध्यप्रदेश के इंदौर जिले में स्थित काकरी बरडी पहाड़ी से निकलती है। इस नदी के किनारे उज्जैन का विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर स्थित है जहाँ प्रत्येक 12 वर्षों में कुम्भ का मेला लगता है।


25.माही 
इस नदी का उद्गम अरावली पर्वत श्रृंखला से होता है तथा यह गुजरात में खंबात की खाड़ी में गिरती है। यह नदी कर्क रेखा को दो बार काटती हैं।


26.सावरमती 
सावरमती राजस्थान के उदयपुर में अरावली पर्वत श्रृंखला से निकलती है तथा खंबात की खाड़ी मिल जाती है। इस नदी के किनारे अहमदाबाद तथा गांधीनगर बसे हुए हैं।



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